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अंतिम संदेश

खलील जिब्रान

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :74
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9549

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विचार प्रधान कहानियों के द्वारा मानवता के संदेश

अंतिम संदेश

 

(1)


तिचरीन के माह में, जोकि यादगारों का महीना होता है, अनेकों में एक और सबका प्रिय अलमुस्तफा, जोकि अपने दिन का स्वयं ही मध्याह्र था, अपनी जन्मभूमि के द्वीप को लौटा।

और जब उसका जहाज बन्दरगाह के निकट पहुंचा, तो वह जहाज के अगले भाग में आकुलता से खडा़ हो गया। उसके ह्रदय में स्वदेश लौट आने की खुशी हिलोरें ले रही थी।

और तब वह बोला, और ऐसा लगा मानो सागर उसकी आवाज में समा गया हो। उसने कहा, देखते हो, यह है हमारी जन्मभूमि का द्वीप। यहीं तो पृथ्वी ने हमें उभारा था- एक गीत और एक पहेली बनाकर- गीत आकाश की ऊंचाई में और पहेली पृथ्वी की गहराई में। और वह, जोकि आकाश तथा पृथ्वी के बीच में है, गीत को फैलायेगा और पहेली को बुझायेगा, किन्तु हमारी उत्कंठा को समाप्त न कर पायेगा।

सागर फिर हमें एक बार तट को सौंप रहा है। हम उसकी अनेक लहरों में एक लहर ही तो हैं। अपनी वाणी को स्वर देने के लिए वह हमें बाहर भेजता है, किन्तु हम ऐसा कैसे कर सकते हैं, जबतक कि हम अपने ह्रदय की एकरूपता पत्थर तथा रेत के साथ न कर लें।''

क्योंकि नाविकों और समुद्र का यही कानून है- यदि तुम स्वतंत्रता चाहते हो तो तुम्हें कुहरे में परिवर्तित होना पडे़गा। निराकार हमेशा आकार ग्रहण करता है, जैसे अगणित ग्रह भी तो एक दिन सूर्य और चंद्रमा बन जायंगे, और हम, जिन्होंने बहुत-कुछ पा लिया है, और जो अब अपने द्वीप को लौट आये हैं, फिर एक बार कुहरा बन जाना चाहिए और आरम्भ का ज्ञान प्राप्त करना चाहिए। जोकि आकाश की ऊंचाइयों तक जी सके और ऊंचा उठ सके, सिवा उसके जोकि आकांक्षा और स्वतंत्रता में बिखरकर समा जाय?

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